एक्सीडेंट

अपनी कलम को वह वापस पेपर पर रखकर कुछ सोच मे पड़ जाता, वह अपनी खिड़की से बाहर देखता सूर्य की किरणे तिरछी आ पड़ती थी और प्रकृति का सुंदर सौंदर्य पुलकित होता था। इस प्रकृति के वातावरण और कालेज के हजारों विद्यार्थियों के बीच वह अकेला सा जीवन व्यतीत कर रहा था। वह उर्ध्वमुखी होकर अक्सर कुछ सोच मे डूबा रहता था और बीते समय को याद कर कभी हंसता और खुश होता था लेकिन ज्यादा समय वह निराशाजनक दुःख से ही आनंदित था।

”  तेरी खिलखिलाती हसीं,
   मुस्कुराहट है मेरी,
   तू चंचल सी और तेरी बातें भी “

लगभग बारह बार पन्नों पर अपनी भावनाओं के शब्दो को लिखकर वह फाड़ चुका था और अचानक उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे से बाहर निकलकर बरामदे से होते हुए दाईं ओर घर से निकलकर सीधा सामने कुछ दूर जाकर अपने अकेलेपन को एक सिगरेट के साथ सुलगाने लगा । जैसे जैसे कस खत्म होते वैसे वैसे वह स्वयं को पुनः अकेला समझने लगता जैसे कि ये सिगरेट ही उसकी साथी थी बाकी कोई नहीं,,,,

लगभग पांच फुट की उचाई , सांवला सा चेहरा, सामान्य
पहनावा और दाहिने हाथ में कड़ा पहना करता था, घड़ी का शौक था उसे लेकिन इसी चाह मे नहीं खरीदी की जिससे वह प्राप्त करना चाहता है वह एक दिन अपनी पसंद की हाथ घड़ी उसे देगी।

” कितने हुए भाई ” — दुकानदार से अपना पुराना हिसाब मांगता है।

” सत्तर रुपया पहले के और आज के बीस ” — दुकानदार ने स्पष्ट कहा।

” एक सिगरेट और दे दो ” — सौ रुपए थमाकर एक सिगरेट के साथ चला जाता है।

अपने घर से दूर शिव पढ़ने के लिए किराए से रहता था वह भोपाल में रहता और परिवार लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर गांव में। परिवार में माता पिता और छोटी बहन थी और परिवार की जिम्मेदारी शिव पर। लगभग दस महीनो से वह घर नहीं गया था। जब आखिरी बार गया था तो घर की आर्थिक स्थिति देखकर वह और चिंतित और तनावग्रस्त ही रहता । पिता तो उम्र के कारण जितना करना था कर चुके अब उसे ही करना था जो भी वह कर सकता था। अचानक वह कमरे पर बैठे बैठे घर से आते वक्त आखिरी दिन याद करने लगा –

” चल, जल्दी से खाना खा ले ” — मम्मी ने हड़बड़ाहट में कहा।

” नहीं मम्मी, बस पेट भरा है ” — वह कुछ व्यस्थ सा बोलते हुए काम में लग गया।

” जितना लगता उतना खा ले ” — मां ने चिंतित स्वर में कहा।

” लाओ दे दो ”  — मां की चिंता की समझ उसने थोड़ा सा खाया और कहने लगा मां पैसे है ??

” बेटा जितने है उतने दे देती हूं ” — मा ने कहा। 

” हां ठीक है, थोड़े से दे दो “।

वह भी सब जानता था लेकिन जब तक दो साल की पढ़ाई पूरी ना कर ले वह भी कुछ नहीं कर सकता था। जैसा था वैसा ही वह चला लेता। उस रात वह नहीं सोता जब वह घर से आता था। कुछ याद आती और कुछ चिंता सताती थी। 

इस चिंता और तनाव भरे जीवन में मित्र रूप में कुछ दो – एक लोग थे जिनसे वह बतिया लिया करता और अपनी बातें साझा कर मन हल्का कर लेता। उनमें से एक मित्र उससे दूर इंदौर में रहता और उसकी एक मित्र उसी के कॉलेज में पढ़ती थी वह उसे राखी भी बांधती थी और शिव खुशी से बंधवाता भी था। कुछ समय से कॉलेज बंद था और उसके पहले शिव इंदौर गया था राघव से मिलने।

इसी बीच कुछ तनाव उसकी बहन से हो गया और उसने भी बात करना छोड़ दिया। कुछ एक दो लोग उसके जीवन के करीब थे उसमें से एक और कम हो जाता है।

परिवर्तन नियम है और परिवर्तन आवश्यक भी है। कभी कभी व्यक्ति जीवन की अल्भ्य अभिलाषाओं से स्वयं को जोड़कर व्यथित हुए फिरता है और जीवन आगे बढ़ता हुआ भी, चलता हुआ उसे थमा सा लगता है। समय के साथ प्राथमिकताएं बदलती है, स्तिथि और परिस्थिति बदलती है परन्तु आज तो ऐसा समय है कुछ बदले ना बदले, लोग बहुत जल्दी बदलते है। आशाएं, उपेक्षाएं जीवन का अभिन्न अंग है।  बच्चे अपने माता पिता से आशा करते है, प्रेमी प्रेमिका से और मित्र अपने मित्र से। आदर्शत: यही दुःख का कारण है परन्तु दुःख भी जीवन का अभिन्न अंग है।

एक शाम जब वह अपनी टेबल पर कुछ लिखने के लिए बैठता है, कुछ परेशान सा कुछ लिखता और फिर अपनी रचनाओं की डायरी अलग रखकर कुछ पढ़ने लगता। उस शाम जब वह पढ़ाई करके उठा तो अचानक से कुछ विचार करने लगता है और अपनी कॉपी पर ” कुछ तो करना पड़ेगा “। लिखकर सो जाता है। कुछ दिनों बाद उसके कॉलेज की परीक्षा थी और कुछ दिनों तक वह उन्हीं परीक्षाओं में व्यस्थ था। परीक्षा होने के बाद दिनों के अवकाश के बाद वह पुनः अपने जीवन के उसी एकांत में पुनः लौट आता है। हालाकि शिव का नाम कॉलेज में प्रथम स्थान पर था, लेकिन टॉपर होने के बावजूद वह उतना प्रसन्न नहीं था जितना दुखी अपने जीवन में।

अपने लेखकीय गुण के कारण वह अक्सर निराशावादी कविताएं लिखा करता था और जीवन से कुपित भी रहता था, अक्सर कुछ लिखकर वह सोच में डूबा रहता,

” शांत  क्लातं 
  अदिष्ट  सा संभ्रांत
जीवन से कुपित हूं
मै चिंतित हूं। “

कुछ ऐसी कविताएं उसकी डायरी में संकलित थी और उसका भाव जीवन से असंतुष्टता का ही रहता था। वास्तव में बहुतो को जीवन से बहुत सी शिकायत होती है परन्तु जीवन तो एक न एक दिन समाप्त अवश्य होगा और शाश्वत केवल मृत्यु है। तो जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन ही है जो सत्यता पूर्वक जीवन के हर रहस्य को हमारे सम्मुख रखता है वह सिखाता है सदैव। हर पल हर क्षण जीवन में सीख है और सिर्फ सीख ही है। केवल सीखते रहना ही सभी समस्याओं का अंत कर देगा तो फिर जीवन से कुपित होने की बजाय जीवन से प्रेम होना चाहिए। कई बार हमारा स्वकेन्द्रित जीवन हमे हमारी वास्तविक सच्चाई की ओर अग्रसर करता है और हम जीवन से कुपित रहकर उस सत्य से भागते रहते है। हमे स्वीकार करना चाहिए अपने सत्य को और यही हमारा जीवन भी चाहता भी है।

परीक्षा के अवकाश के बाद जब वह इस बार घर से लौटा तो इस बार उसकी चिंता और तनाव के साथ और एक और तत्व उसके मुख पर तेजवान हो रहा था। वह था आत्मविश्वास। यह आत्मविश्वास उसके अंदर कहीं दुबका सा छिपा था और कभी कभी उभर आता था आज वह पुनः उभरा लेकिन वापस दुबकने के लिए नहीं, उसे कुछ बना देने के लिए।  शिव अपने जीवन को एक लक्ष्य प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन मानकर मेहनत और लगन से अपने कार्य में प्रवृत्त हो गया। आंतरिक रूप से चिंतित तनावग्रस्त और टूटा हुआ और बाह्य कठोर निर्लिप्त रहकर लक्ष्य केंद्रित सा वह जीवन में अग्रसर था और सत्य भी है जिम्मेदारियां शायद जीवन को नहीं परन्तु जीवन जीने के तरीके को अवश्य बदल सकती है। इस बार घर से लौटते वक्त वह मां से चिंतित और कुंठित होकर नहीं, प्रसन्नचित होकर कह आया था –

” मां कुछ और दिन की परेशानी है बस ! “

मां ने कहा – ” बेटा तुझसे ही तो आस है “

वह बोला – ” जल्दी ही अच्छा होगा उसके यहां देर है अंधेर नहीं।”

मां ने कुशल से जाने और रहने की सीख समझाइश दी और मां उस दिन बहुत रोयी और शिव इस बार कमरे पर आकर एक सिगरेट पीकर सो गया जैसा कि वह सामान्यतः घर से लौटने के बाद नहीं करता था। दूसरे दिन अपनी डायरी में कुछ पंक्तियां लिखता है और कुछ विश्वास भरा हुआ पड़ने बैठ जाता है। उस शाम वह सिगरेट पीने के बाद कभी कभी घूमने निकाल जाने के शौक से हाईवे पर घूमने चला गया, संध्या के मनोरम चित्र और बहती पवन की ध्वनि वह महसूस कर सकता था। शाम के वक्त नीले आसमान को देखना उसे अच्छा लगता था, वह उसके रहस्य को जान लेना चाहता था, खुद को आसमान में खोजता और फिर उससे में गुम हो जाता था। संभवतः उसे इस कृत्य मे भी कुछ नवीनता और आशावादिता दिखती हो,,,,

वह कुछ सोचते हुए जा रहा था और उसे एक तीखे, कानो को त्रस्त करने वाली हॉर्न की आवाज सुनाई दी, उसने पीछे मुडकर देखा एक ट्रक अपनी अनियंत्रित गति से गुजर रहा था और शिव अपने परिवार की तस्वीर अपनी आंखो मे बसाए कुछ समझता कि इतने देर में शिव का एक्सिडेंट हो जाता है। वह खून से सना हुआ ऊपर चढ़ी आंखो से कुछ देखता सा मूर्छित पड़ा था।  कुछ समय तक अस्पताल में जीवित रहा, लेकिन प्रकृति का नियम शाश्वत मृत्यु फिर अपनी सत्यता साबित कर गई। शिव की मां केवल रोते रही और रोने के अलावा वह निसहाय कर भी क्या सकती थी।  जीवन के आगे कोई कर ही क्या सकता है बजाय कोशिश के।

शिव का मित्र राघव तो उसे अक्सर याद करता था पर यादों के अलावा उसके पास था ही क्या, हां शिव की कविताएं थी जो उसकी मन:स्तिथि और भावों को पुनः जागृति प्रदान करती थी। मां और मित्र तो दुखित, व्यथित थे परन्तु शिव से जुड़े एक व्यक्ति के बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है, वह थी उसकी बहन, मुंह बोली बहन। वह क्या महसूस करती थी या क्या कर रही होगी यह मेरी स्मृतियों से परे है। जितने समय वह अस्पताल में जीवित रहा उतने समय वह और उसका दिल केवल चिंतित था और केवल चिंतित,,,

    चिंता चिता समान होती है, यह वाक्य अनेकों बार मैने सुना है परन्तु शिव आंतरिक रूप से चिंतित होने के बावजूद खुश रहना सीख रहा था, वह लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता था, परन्तु शायद जीवन को यह मंजूर नहीं था।  अब जीवन के लिए कोई सवाल कर भी कैसे सकता है और कर भी ले तो उत्तर यही है – ” जीवन एक सीख है। “ और हमारे सवाल केवल सीमित है और उत्तर अनेक परन्तु सार एक,,,,

शिव के एक्सिडेंट के बाद सब खत्म सा था, जीवन थम सा गया था, परन्तु क्या वास्तव में जीवन किसी के लिए रुकता है ??

शिव का अंतर्मन क्यों विचलित था अथवा था भी या नहीं क्या पता, लेकिन उसकी अंतिम पंक्तियां यह थी –

कभी निकलो बाहर,                              
और देखो खुले आसमान को।
इस नीलीमा में,
खोजो खुद को।

सभी चिंताओं को,
भूल कर। 
ढूंढ लो इसमें डूब कर,
जान लो खुद को।

प्रयास गुप्ता।
२१/१२/२०२०

Neeraj Yadav

मैं नीरज यादव इस वैबसाइट (ThePoetryLine.in) का Founder और एक Computer Science Student हूँ। मुझे शायरी पढ़ना और लिखना काफी पसंद है।

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