गए थे किस्मत आजमाने!

चले थे घर से दूर कुछ कमाने,
कुछ बनने कुछ बनाने,
हम मजदूर है, गए थे किस्मत आजमाने।

किराए से रहते वहां,
रोज़ कमाते, हेतु रोज़ खाने,
हम मजदूर है, गए थे किस्मत आजमाने।

राशन ख़तम पैसे ख़तम,
महामारी में चले हम, इसी बहाने,
हम मजदूर है, स्वत पहुंच जाए आशियाने।

पैरों में सूजन और छाले,
रोते ही सोते, हम वीराने
हम मजदूर है, गए थे किस्मत आजमाने।

धूप में जी रहा छुटपन,
इन आसुओं की कीमत चुकाने,
हम मजदूर है, पैदल चले है घर बचाने। 

क्या ये जीवन मिला है,
संघर्ष का बेड़ा चलाने,
हम मजदूर हैं, गए थे किस्मत आजमाने।

– प्रयास गुप्ता।


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