हे प्रकृति ! करवट बदल… – नम्रता शुक्ला

मानव फिर बन सके सबल
हे प्रकृति!
करवट बदल।

अपने अपनो से मिल पाएं।
वो चेहरे
जो नकाब के पीछे हैं,
पहले की तरह ही खिल जाएं।।
अब ख्वाब किसी के टूटें न
जो फर्ज बचे हैं, छूटे न।
जीवन फिर हो सके सफल।
हे प्रकृति!
करवट बदल।

अब
कोई बेटी माँ से दूर न हो।
बिन माँ का जीवन जीने पर,
फिर कोई मजबूर न हो।।
पत्नि का सुहाग बचा रहे।
मां-बाप का साया सदा रहे।।
अब कह भी दे
कब तक देगी?
मानव की खुशियों में दखल।
हे प्रकृति!
करवट बदल।

दुआएँ कर दें असर
स्वस्थ हो अब हर वसर।
थम जाए मौतों का क़हर
बेखौफ हो जाएं शहर।।
अब प्रयास न हों विफल।
हे प्रकृति!
करवट बदल।

अब थकी सी शाम न हो
यूँ हर सुबह परेशान न हो।
चारों तरफ
खुशी की धूप खिले
फिर धरती शमशान न हो।।
कर दे न तू भी एक पहल।
हे प्रकृति!
करवट बदल..!

~ नम्रता शुक्ला


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