Hijab Shayari In Hindi / हिजाब शायरी हिंदी में
Hijab Shayari In Hindi / हिजाब शायरी हिंदी में एक छोटा सा मास्क जितनी हिफाजत करता है, उससे कही ज्यादा हिफ़ाजत हिजाब करता है. भारत के कर्नाटक राज्य में आजकल “हिजाब” एक विवादित मुद्दा बना हुआ है. कोर्ट में यह मामला है कि स्कूल में ड्रेस कोड एक होना चाहिए। सबको न्याय पर भरोसा रखना चाहिए और कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करना चाहिए। हमें उम्मीद है कि देश की न्यायपालिका सस्कृति और प्रगति को ध्यान में रखकर फैसला करेगी।
हम उम्मीद करते है की आपको ये जानकारी अच्छी लगेगी जिसमे हमने Hijab Shayari In Hindi की पोस्ट को आपके साथ शेर किया है और उसके साथ HIJAB पर बनी कुछ ला जवाब शायरी और हिजाब फोटोज को भी आप के साथ शेर किये है.
जिसको आप आसानी से डाउनलोड करके अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट या शेयर और status पर भी लगा कर अपने फेमली और अपने दोस्तो को भी शेर कर सकते है. तो चलिए शुरू करते है ये हिजाब शायरी हिंदी में हमे ये मालूम होना चाहिए की हिज़ाब कोई गलत चीज़ नहीं है और नहीं कोई ये किसी एक मज़हब के लिए है हिज़ाब कोई भी पहन सकता है इसमें कोई भी बुराई नहीं आप पर्दा न समझ कर ये भी भी सोच कर पहन सकते है की ये हिज़ाब हमे धुप और भूल मिटटी से या बहार के पलियूशन से आपो सैफ रखने में मदद करता है और बहुत ही अच्छा होता है कोरोना जैसे हल में भी हमे सैफ और सुवचत रखता है चलो फिर पढ़ते है ये शायरी maa love shayari
Hijab Shayari In Hindi / हिजाब शायरी हिंदी में
शराफत के उनके दावे सब सच्चे लगते हैं
कि हूस्नवाले हिजाब में ही अच्छे लगते हैं
हिजाब हर उस बुरी नज़र से
हमारी हिफ़ाज़त करता है
के जो बेवजह ही चली आती है
उठकर हमारी तरफ
आज फिर तड़प उठा है दिल दीदार के लिए
सुना है हिजाब में छुप कर आज चाँद निकला है
क़यामत की हूर तू यूं ना रह हिजाब में
आंधी तेरे हुस्न की रुक ना सकेगी नकाब में
अहसानमंद हूं उस हिजाब का जिसने
मेरे चाँद को सबकी नज़र से बचा के रखा
लोग खूबसूरती पे मरतें हैं..
और मैं तेरें हिजाब पे मरता हूँ..
बाहर जब भी मिलने वो आते हैं
पुरे हिजाब में आते हैं
बेहिजाब लेकिन वो अकसर
मेरे ख़्वाब में आते हैं
देख आज फिर तुझे देखने के लिए
तेरी गलियो में कितने पागल आए है
वक्त का फरेब तो देखो
तुम्हारे हिजाब के लिए कितने बादल छाए है
उनके इंतज़ार में बैठे है
चांद के दीदार में बैठे है
सोचा आयेंगे सजधज के
वो हिजाब में आकर बैठे है
छुप कर निकल जाते थे जो हिजाबो में
अब पहचान में भी आने लगे वो नकाबो में
Hijab Shayari In Hindi / हिजाब शायरी हिंदी में
मुहब्बत जब भी रहा है
बेहिजाब ही रहा है
हिजाब मे तो तहजीब रहती है
अबस हो या आदिल
हर एक के सवालों का जवाब रखती हूँ
चेहरे पर नहीं बाँधती पर
निगाहों में अदब का हिजाब रखती हूँ
ख़्वाब ही ख़्वाब आखिर कब तलक देखूं
निकल आईये हिजाब से एक झलक देखूं
तुम जब हिजाब किया करो
निगाह पाबंद किया करो
अपने हिजाब की आड़ में
क़ौम ना बदनाम किया करो
हिफ़ाज़त-ए-ख़ुद-इख़्तियारी
संभल कर किया करो
तरसकर मिलने में जो मजा है
उसे रोज मिलकर खराब कर दें क्या
वो हिजाबों में जिस अदा से शर्म खाती है
सरे महफ़िल उसे बेहिजाब कर दें क्या
तुम हिजाब में आना
मैं तुम्हें इन आंखों से पहचान लूंगा
अपना सर रखना मेरे कांधे पे
मैं तेरे बारे में जान लूंगा
उनके चेहरे की तारीफ़ करूं भी तो कैसे
उन्होंने अपने हुस्न का महताब
हिजाब में छुपा रखा है
अब ये जादूगरी ही तो है जिस्म ओ जमाल की
हिजाबों में हो तो लगती है और भी कमाल की
मेरे इश्क़ की भी अलग कहानी थी
मैने तो बाहर हिजाब पहना था पर उसने अंदर
देखा जब उनकों जो वो गुज़रें हिजाब में
बिखर गए सारें लफ्ज़ ख़त रह गए किताब में
Hijab Shayari In Hindi / हिजाब शायरी हिंदी में
हिजाब और हिसाब में सिर्फ इतना फर्क है
हिजाब दूसरों को देखकर पहना जाता है और
हिसाब दूसरों को देखकर लगाया जाता है
क्यूँ गुलाबी रंग, खुशबू, इश्क़ आबाद नही हैं
कांटो मे खिला हर इक फूल गुलाब नही हैं
जरूर तुमने आज हिज़ाब हटाया होगा चेहरे से
आसमां तक नूर नुमाया हैं ये कोई महताब नही हैं
लोग जुल्फों के असीर होते हैं
हमने उनके हिजाब पर दिल हारा है
यूँ ही देखते रहे शब भर मुझे
तो यकीनन किताब हो जाऊगा मैं
कहीं चुरा न ले चहरे से नूर चाँदनी
तेरे हुस्न का हिजाब हो जाऊगा मैं
आँखों की नज़ाकत से तुम्हारे
ये दुनिया घायल हो जाये
दुपट्टे और हिजाब में तब इन्हें
फर्क ही न समझ आए
नजरें मिलाते नहीं मुस्कुराए जाते हैं
बताओ यूं भी कहीं दिल मिलाएं जाते हैं
हिजा़ब हो मगर ऐसा भी क्या हिजा़ब आखिर
झलक दिखलाते नहीं मुँह छिपाये चले जाते हैं
मेरे माथे पर जो कपड़ा है
वो पड़दा है हिजाबी भी है
दुश्मन के लिए आजाब़ भी है
जो शहीद हुए तो कफन भी वही
वही परचम है इंकलाब भी है
जो नजर उठी बुजदिल कि अगर
यह उनके लिए अफताब भी है
मेरे माथे पर जो कपड़ा है
वो हिजाब भी है और नायाब भी है
उनके खिलाफ़ बुलंद आवाज़ होगा
जिन्हें हमारे हिजाब से एतराज़ होगा
शर्मो-हया का जिस्म पे आना हिजाब है
ज़हरा का ख़ानदानी ख़ज़ाना हिजाब है
या मान लो हिजाब या मानो हो बेहया
जब बेहयाई जड़ से मिटाना हिजाब है
हिजाब तुम्हारी पहचान बने ये तो ठीक नहीं
तुम अपना हक मांगों, किसी से कोई भीख नहीं
नारी, प्यारी, संस्कारी और भारी हैं हम सब पे
हम खुश हैं इसके पीछे तो दखलंदाजी ठीक नहीं
Hijab Tumhari Phchan Bane
हिजाब से रोकते हो
क्या भगवान ने ऐसा कोई पाठ पढ़ाया है कभी
नेताओं की बात मानने लग गए हो
नेताओं ने आपस में लड़ने के सिवा कुछ सिखाया है कभी
हिजाब के मेरे पहनने से
उनका दम घुट गया
मुआशरे के अमन में ख़लल डालने
अब हिजाब का मुद्दा मिल गया
कैसे बयाँ करू उनके हुस्न का मकाम
वो होठों पर समुंदर लिए फिरते हैं
उनसे कहो लगा कर आए हिज़ाब
सड़कों पर सरेआम दरिंदे फिरते हैं
हां वो चाहते हैं कि औरत बेपर्दा हो जाए और
उनकी लालच भरी निगाहों को सुकून मिल जाए
अना और ज़र्फ़ के एजाज़ तो पहनेंगी ही
खून में शामिल है ये अंदाज़ तो पहनेंगी ही
तुम्हे उनके हिजाब से दिक्कत क्या है
वो शहज़ादियाँ हैं ताज तो पहनेंगी ही
अगर आधे कपड़े पहनना तुम्हें स्वीकार है
तो पूरे कपड़े पहनना मेरा अधिकार है
मुकाबला करने
न जाने कहां कहां के बिगड़े आये हैं
आज बेटियों से लड़ने
मैदान में मर्द रूपी हिजड़े आये हैं
शिक्षा के मंदिर के अन्दर नफरत की तैयारी है
मोदी जी के नये इंडिया की आभारी है
एक बेटी ने इंकलाब का हाथ उठा कर बता दिया
एक शेरनी सौ कुत्तों पर भारी है
अगर आपको शरीर को दिखाने वालों की
परवाह नहीं है
तो उन लोगों की परवाह क्यों है
जो अपने शरीर को ढकते हैं?
वो खातून हिज़ाब मैं खूबसूरत लगती हैं
वो फिर भी अपने हक के लिए लड़ती है
वो अपना तन पोशीदा कर के चलती है
वो खातून इस्लाम की शहजादी लगती है
हमारी आन हमारी शान हिज़ाब है
हमारे क़ौम की पहचान हिज़ाब है
हिजाब शायरी हिंदी में
हक़ के लिए उठती बेखौफ आवाज़ देखी है
इंकलाब हमने अपने आस पास देखी है
कमज़ोर मत समझना तुम उन्हें परदे में देखकर
हिजाब में हमने शेरनी की दहाड़ देखी है
हिजा़ब, बुरका, घूंघट सब बहाना है!
मकसद तो वही! लड़कियों को
चूल्हे-चक्की में ही खपाना है
तेरी खूबसरती का राज़
तेर चेहरे पे हिजाब
वो बढाते रहे दिन ब दिन
हिज़ाब का दायरा
हम तरसते रहे उम्र भर
उन्हें बेनक़ाब देखने को
वो बढाते रहे दिन ब दिन
हिज़ाब का दायरा
हम तरसते रहे उम्र भर
उन्हें बेनक़ाब देखने को
इमारत के पीछे यूँ चाँद शर्माया सा छुपा है
नूर भी तो है कुछ ऐसा आज
कि हिजाब भी कम पड़ रहा है
नंगों ने हुकुम किया अब हिजाब पहन कर रहो
आंखों से नंगा करेंगे सब नक़ाब पहन कर रहो
थोड़ा और अच्छे से ढक मुझे,
तू हिज़ाब है, मेरी झूठी हँसी नही
लोग हुस्न पर मरते है
हमारा दिल उनके हिजाब पर आया
हिज़ाब गिरा कर हमकों क़त्ल किया
और लोग हमारी मौत का हतियार ढूँढते रहे
Tere Chehre Pe Ye jo Chehra hai
तेरे चहेरे पर ये जो चेहरा है
उसे नकाब कहुँ या हिजाब
युँ तो लाजमी सा है ये इश्क भी
क्यों ना लिख दूँ मैं इस पर एक किताब
हिजाब में देखा उन्हें
उनकी नजरों से दिल लगा बैठे
कयामत छलक रही थी कुछ इस कदर
उनकी नजरों पर खुदको लुटा बैठे
मैं नही वो मतवाला
जो इश्क़ मोहब्बत करता हूँ
बस बेपर्दा होते भावो को
शब्दो के हिजाब में रखता हूँ
कल का नशा आज भी है और कल भी रहेगा
नजरों का पैमाना जाम बनके कहेगा
जो हिजाब से दिखती आंखें थी
उसका नशा आज भी है और कल भी रहेगा
हिजाब का हिसाब ग़ज़ब
कश्मकश का दौर ख़तम नहीं होता
नज़रों से होते इशारे
बेकल दिल का शोर कम नहीं होता
जान ही लेना है तो ऐसे ही बता देते
क्या जरूरत थी
यूँ सरे आम हिजाब हटाने की
ना जाने क्यू वो कपड़े उतारने
को ही महौब्बत समझती थी
मैने तो तोहफे मे हिजाब मांग कर
उस का नजरिया ही बदल दिया
नीयत उनकी खराब होती है
जिनके चेहरों पर नकाब होती है
हम तो उन निगाहों के कायल हैं
नजरों पर जिनके हिजाब होती है
छिटकती नहीं चांदनी सर ओ बाम मेरे
चांद भी आजकल हिजाबों में कैद है
अब हटाओ जुल्फें आंखों से कि मैं तुम्हें पहचानता हूं
मैं तुम्हें तुम्हारी हिजाबो से नहीं बल्कि
आंखों से पहचानता हूं
Hatao Zulfe Aakho Se
जुदा होकर तुझसे जाऊँगा कहाँ
तुझे पाकर तो खुद को पाया है
तुझ से ही रौनकें, तुझसे ही जहाँ
खुद को बेनकाब कर ही तो ये हिजाब पाया है
चलो माना छुपा लोगे खुद को हिजाब से
पर सोचो कैसे निकालोगे दिल की किताब से
उसका जिक्र कैसे करूं इन होठों से
उसके रुसवाई से बेहिसाब डरता हूं
पढ़ ना ले कोई मेरे मन के कहानी को
मैं तो उसकी यादों में भी हिजाब रखता हूं
हिजाब में छुपाना खुद को बेकार है
मैंने निगाहों से पढा है कि
प्यार तुझमें भी बेशुमार है
मोहब्बत का हिसाब सामने आया
ना कोई गुनाह ना सवाब सामने आया
इश्क़ के इस बेपर्दा दारी माहौल में
मेरे हिस्से में हरबार हिजाब सामने आया
आखों को मेरी बेताब कर दिया तुमने
हिजाब हटाकर आफताब रख दिया तुमने
फिर जाते-जाते पलट कर देखना तुम्हारा
कितनी रातों के लिए महताब रख दिया तुमने
फूलों में गुलाब अच्छा लगता है और
हसीन चेहरे पर हिजाब अच्छा लगता है
हिजाब सभ्यता और सस्कृति है,
इससे सभी को प्यार होना चाहिए,
अगर पक्ष में मैंने उठाई है आवाज
तो क्या मुझ पर वार होना चाहिए।
खूबसूरती है मेरे वतन की रंग-बिरंगी रिवाजों में,
चाहे कोई तंग कपड़े पहने या कोई रहे हिजाबों में.
समाज का कुछ तो लिहाज होना चाहिए,
घर से निकलों तो सिर पर हिजाब होना चाहिए
हिजाब में भी जो पहचान लेते है हमे,
उनसे हम पर्दा किस बात का करें।
Hijab Me Mhi Pehchan Lete Hai
धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को
कोई एकाएक खारिज नहीं कर सकता है,
हिजाब से कोई परेशानी और दिक्क्त होगी
तो मुस्लिम लड़कियाँ ही बगावत कर देंगी।
हिजाब को राजनीतिक मुद्दा ना बनाया जाएँ,
इस मुद्दे पर किसी को सताया ना जाएँ,
हमें हमारी न्याय व्यवस्था पर पूर्ण भरोसा है
उसके फ़ैसले को आने दे. सर्वमान्य होगा।
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
ताबीज़ में बंधे हिजाब के अक्स हो आप,
जो दिल को दे नर्म सुकूँ वो शख़्स हो आप
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
नक़ाब उठाओ तो हर शय को पाओगे सालिम
ये काएनात ब-तौर-ए-हिजाब टूटती है
कब तक छुपाओगे रुख़-ए-ज़ेबा नक़ाब में
बर्क़-ए-जमाल रह नहीं सकता हिजाब में
कब तक छुपाओगे रुख़-ए-ज़ेबा नक़ाब में
बर्क़-ए-जमाल रह नहीं सकता हिजाब में
ना जाने क्यों राजनीतिक लाभ साधा है सबने,
इससे किसी को क्या परेशानी गर हिजाब बाधा है हमने।
ये नया दौर सही
हम एतमाद करते है रिवाजों में,
दिखावे में नहीं
हुस्न महफ़ूज रहता है हिजाबों में.
Ye Hijab Naya Dor Sahi
जन्नत की वादियों में वो गुलाब भी शरमा गया,
पढ़ते नमाज़ उसको जब हिजाब ओढ़ें देख लिया।
जब भी गुजरे बिन्त-ए-हव्वा हिजाब में,
अदब करती दुनिया उसके लिहाज में।
हिज़ाब में रह कर आवाज बुलंद करेंगे हम,
हक़ के लिए फिर से इंकलाब करेंगे हम
ना झूठे वादें, ना कोई गुलाब चाहिए,
हक से पहन सके, वही हिजाब चाहिए।
ऐसे नज़र-ए-गैर का हिसाब रखती है,
वो मुसलमां नहीं पर हिजाब रखती है
अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
एक छोटा सा मास्क जितनी हिफाजत करता है,
उससे कही ज्यादा हिफ़ाजत हिजाब करता है.