क्या मैं बड़ा हूँ? – प्रयास गुप्ता

      घर में ना कोई बड़ा भाई है, ना कोई बड़ी बहन । मै ही बड़ा हूं । क्या बड़ा होने का अर्थ यही है कि वास्तव मे बड़ा होना आवश्यक है ? बड़ा हूं तो बचपन से ही बड़ा बना दिया । और एक जन्मजात टैग लगा दिया गया है कि वह तो बड़ा है और इस बड़े होने कि वजह से मै समझदार भी हूं जिद्दी बिल्कुल नहीं हूं और सबके साथ सामंजस्य स्थापित करने का गुण भी है मुझमें । इस प्रकार के कुछ आदर्श बड़े होने में है वह भी घर का बड़ा ।

           छोटो को प्यार लाड़ और दुलार करते देख बड़े को हर्षित और पुलकित होना अथवा नित प्रति अपने काम मै लग्न रहना घर के बड़े कहलाने का कुछ एक मुख्य तत्व है और केवल केवल अपनी मां के कुछ  प्यार में मन भरकर घर की सेवा की पोटरी बड़े के सिर पर रख दी गई । समझौता-यह समझौता, बड़ा बचपन से ही अपने हाथो मे लेकर पैदा होता है शायद । वह बड़ा है, क्योंकि वह बड़ा है इसलिए वह समझौता करेगा । कुछ भी काम हो तो उसके गले में पड़ी समझौते की घंटी को बजाया जाता है और मूक प्राणी की तरह वह इस घंटी को सुनकर चलने लगता है किसी ऐसी दिशा की ओर, जो उसे अपने निर्देशक के निर्देश पर दिखाई गई है ।

बात तो घर के बड़े की है  जो कुछ नियमो से बंधा होता है और समझौते कि घंटी उसके गले में पड़ी रहती है साथ ही वह बड़ा होने की गरिमा में रहकर जीना जानता है वहीं घर का बड़ा है ।
घर के बड़े के सिर पर घर की सेवा की पोटरी के साथ ही एक बेड़ा उसे दिया जाता है वह भी जन्मजात । वह बेड़ा है जिम्मेदारियों का बेड़ा । यही बेड़ा उसे संसार रूपी भवसागर से पार लगाएगा क्योंकि संसार सागर में आने वाली कठिनाइयों को पार करने के लिए यही बेड़ा तो है जिस पर एक निश्चित समय के बाद सारा घर सवार हो जाता है और बड़ा, उसका नाविक बन जाता है ।

       गंगोत्री से निकलने वाली मां गंगा पापहरिनी कहीं जाती है। ऐसी मां गंगा के जल से केवट ने अपनी नाव में प्रभु श्री राम को बैठाने से पहले चरण धुलवाए थे और स्वयं तर गया था । एक नाविक वह था जो भगवान के चरणों की रज को प्राप्त कर संसार से तर गया था और एक यह नाविक है जो भगवान को उसी के संसार सागर में अपने बेड़े पर बैठकर चलना नहीं जानता है । अगर वह घर का बड़ा होता , तो क्या ऐसे संस्कारो से पूर्ण नहीं होता कि अपने बंधुत्व और अपनी सभ्यता को, और भारतीय संस्कृति के बीच सामंजस्य ना बिठा सका । सामंजस्य बैठाने का गुण बड़े में है यदि वह किसी क्षेत्र पर सामंजस्य बैठा सकता है तो वह हर क्षेत्र में सामंजस्य बैठा सकता है चाहे वह सामाजिक हो, चाहे वह सांस्कृतिक हो, चाहे वह आध्यात्मिक हो । तभी वह वास्तव में  बड़ा है ।

  बहरहाल, बड़े के पास जिम्मेदारियों होती है, बहुत होती है जन्म से । अब वह इन जिम्मेदारियों का निर्वहन किस प्रकार करता है यही उसके बड़े होने की न परीक्षा है । उसकी निश्चयात्मक बुद्धि उसे किस कार्य के लिए प्रेरित करती है यह उसके ऊपर निर्भर है हालाकि कुछ प्रभाव परिवार, समाज, माहौल और संस्कारों का भी है । इन जिम्मेदारियों के निपटान हेतु वह स्वयं को भौतिक सुख सुविधाओं से संपन्न बड़े होने की ओर प्रेरित करता है और स्वयं इस प्रकार का  भौतिकवादी  बनना चाहता है । इसलिए उसके कर्म की दृष्टि हमारे लिए महत्वपूर्ण है, वह किस कर्म से किस मार्ग से बड़ा बन रहा है । यह उसके वास्तविक रूप से बड़े होने का निश्चय करता है। यदि वह जिम्मेदारियों का वहन करने में सक्षम हो जाता है और बड़ा व्यक्ति बन भी जाता है तो क्या वह भौतिकवादी रूप से बड़ा व्यक्ति वास्तव में बड़ा है ?

   बड़ा व्यक्ति होने के कई आदर्श है, जो हमारे सम्मुख उपस्थित है जिनसे हम प्रेरणा लेते है; परन्तु जो बड़े है उनमें बड़े होने का  आदर्श हो, यह तो आवश्यक नहीं है। गीता में उपदेश देने वाली घर के बड़े नहीं थे परन्तु उनके वचन हमारे आदर्श है। हम उनके कहे से प्रभावित है। तो वास्तव मै बड़ा कौन है, वह क्या है।

      जीवन के हर क्षण में सीख है वह अपने अंदर एक विशिष्ट मंज़िल छुपाए उस तक पहुंचने का रास्ता, एक-एक पड़ाव हमें इन सुख-दुःख रूपी सीखो के माध्यम से बताना चाहता है।
हमें इसी जीवन में आने वाले प्रत्येक सुख से और प्रत्येक दुःख से सीखकर हमें जीवन के अंदर समाहित उस पलड़े बिछाए बैठी हुई उस मंज़िल के उस चरम शिखर को प्राप्त करने का रास्ता प्राप्त करना है और इस कार्य को करने के लिए सर्वप्रथम कर्म करना ही आवश्यक है बिना कर्म करे “जीवन की सीख” प्राप्त करना संभव नहीं । जो व्यक्ति जीवन के इस सत्य को अर्थात “जीवन की सीख” को प्राप्त करने के लिए अग्रसर है वहीं सही मायने मे बड़ा बन सकता है।

      हमारे देश में भी कुछ है जो राजनीतिक रूप से बड़े होते है जिनका बड़ा होना, उनके मात्र बड़े होने से है। ना उन्हें जीवन की किसी सीख से कोई मतलब है, ना उन्हें जिम्मेदारियों से। ये बड़े भी कुछ ऐसे है जो भौतिकवादी बड़े है। इनमे भी कुछ ही बड़े होते है जो जीवन की सीख से प्रभावित होते है परन्तु केवल कुछ। इन बड़ों का बड़े कहलाने का कोई उद्देश्य और आदर्श नहीं होता और साथ ही इनके पास जिम्मेदारियों का बेड़ा भी नहीं होता क्योंकि ये भौतिकवादी बड़े होते है परन्तु भौतिकवादी बड़ा होने से बड़ा होने का कोई लाभ नहीं है, क्योंकि वे केवल बड़े होते है या बड़े लोग होते है। इसलिए कबीर ने कहा ही है-

     बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
         पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।

  – प्रयास गुप्ता ।
             २० मार्च २०२०।

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