माँ का कर्ज – प्रयास गुप्ता

पढ़ाई थोड़ी कम की  है ,पर प्यार अपार दिया ।
हर समय हर पल मुझ पर ,उनका जीवन वार दिया।
उनकी एक मुस्कान पर , लाखो जलज भी वारे है।
उनकी हर डांट में भी हम ,तीर्थ पुण्य किए सारे है।

आदिकाल से चला आ रहा, यह संबंध पुराना है।
वो तो अनपढ़ ही रहती है, हमको हर दुख से तारा है।
मांगोगे कुछ एक कदम का, ला हाथ वह में रख देगी ।
तुम सोचोगे एक समय पर, वह जीवन भर देगी।

बचपन से बुड़पन तक, बच्चा ही वह मानती है।
सब कुछ न्यौछावर करके,अपना कर्तव्य जानती है ।
तुम्हारा भी कर्तव्य है कुछ, छोड़कर ना जाना  तुम ।
माँ के  राजा बेटे हो, हर पल भी शीश नवाना तुम ।

वह सोचती हमेशा है तेरे लिए, तू है समझता नहीं ।
भूलकर एहसान सब उसके, छोड़ देता है कहीं।
अगर वो तेरी जगह होती, तो ना ये करती अनर्थ।
वैसे ही रखती तुझे वो,जैसे रखा था छुटपन में व्यर्थ।

मेरी हर एक प्रगति में मै, तेरी हर तमन्ना खोजता हूं।
याद करता हूं तुझे मै, हर पल बस तुझे सोचता हूं।
मां जो तूने आंसू बहाकर, भी मुझे हसाया है ।
एक यही है मेरी मंज़िल, जो कर्ज तूने चढाया है।

मानता हूं कि इस जहां में ,कोई विरला है नहीं ।
अपने कर से उतार देगा, जो यह अमृत कर्ज कभी ।
कुछ तो मेरा भी फ़र्ज़ है , हर दुख को तेरे मै सहूं ।
दुनिया की हर खुशी तुझ पर, पुष्प स्वरूप बिखरा सकूं।

– प्रयास गुप्ता।

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