चलते – चलते
यूंही एक दिन
एक परी से मुलाकात हो गई।
वो सड़क के पार खड़ी थी
उसे गोद में उठाने की चाह
मुझे उस तक ले गई।।
ज्यों ही मैने उसे उठाया,
उसकी आंखों में खुद को पाया।
ध्यान से देखा आंखों में
अजनबी सी थी मेरी छाया।।
किसी जादूगर सा सम्मोहन
था उसकी आंखों में।
चेहरा था उसका भोला सा,
और हल्की शरारत बातों में।।
वो मुझको ऐसे ताक रही
मानो की कोई जोहरी हो।
चेहरे पर रूखा भाव लिए
जाने क्या कुछ वो कहती हो।।
उसकी
आंखों में काले बदल थे
जो
मेरी गोद में आकर बरस पड़े।
फिर मैने उसे छोड़ दिया,
और उसने भी मुंह मोड़ लिया।।
कुछ देर वहीं में खड़ी रही
नज़रें बस उसी पे गड़ी रहीं।
नन्हीं सी परी थी
वो कोमल ।
कुछ दूर तलक देखा उसको
फिर
नज़रों से हो गई ओझल।।
~ नम्रता शुक्ला
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